नारियल की गिरी शीतल, देर से पचनेवाली, पौष्टिक, दाह- नाशक तथा रक्त विकार को दूर करनेवाली है । जिसे पित्त का प्रकोप यानि गर्मी का असर हो गया हो, उसे कच्ची नारियल - गिरी खिलानी चाहिए ।
पुराना [सूखा ] नारियल-फल भारी है, उष्णवीर्य [पित्तकारक ] तथा भारी [देर से पचनेदाला] है । खीर, हलुआ, बर्फी, केक आदि में 'खोपा' कुतरकर डाला जाता है। यह शरीर की शक्ति बढ़ाता है। नारियल के अन्दर का पानी प्यास मिटाता है, हल्का होता है। यानि तुरन्त पच जाता है, भूख बढ़ाता है, वीर्यवर्धक है, पित्त [गर्मी] दूर करता है ।

नारियल का तेल सिर पर लगाने से बाल लम्बे, घने तथा चिकने होते हैं । नारियल का तेल खाना पकाने में घी की तरह प्रयुक्त होता है । नारियल-वृक्ष सागर तट पर होते हैं । ७-८ वर्ष बाद इसमें फल लगते हैं ।

बुखार में लगनेवाली प्यास का इलाज 
नारियल की जटा [फल के ऊपर के बालों] को जला लें । इसे गर्म पानी में डालकर रख दें। जब शीतल हो जाए, तो छानकर दें। ज्वर में बहुत अधिक तथा बार-बार प्यास लगने पर इसे देने से प्यास मिटती है ।