यह कब्ज़ करती है, कफ़ बढ़ाती है, गर्मी का असर दूर करती है । रक्त प्रदर तथा श्वेत प्रदर का इलाज रक्त प्रदर अरहर के हरे पत्ते १० ग्राम लेकर सिल पर पानी के छींटे दे-देकर पीसिए । ६ बूंदें सर्षप तेल [सरसों का तेल] मिला- कर तथा स्वाद अनुसार चीनी या बुरा-खांड मिलाकर पीयें । श्वेत प्रदर अरहर के पत्ते उपर्युक्त प्रकार से पीसकर उसमें ६ बूंदें गो-घृत मिलाकर पी जाएँ । बेहोशी दूर करने का उपाय अरहर की दाल को गाय के मूत्र में घिसकर आँखों में अंजन की तरह लगावें । शोथ [सूजन ] दूर करने का उपाय अरहर की दाल की पुल्टिस बांधें । मुंह के छाले, जबान क…
(रक्तपित्त शान्त करने की दवा) उपयोग - इसके सेवन से रक्तपित्त, अम्लपित्त, मूत्रविकार, भ्रम और शिर शूल ठीक होते हैं। स्त्रियों की कमजोरी में इसका विशेष उपयोग होता है । मात्रा - ३६० मिलीग्राम । सेवनकाल - सुबह-शाम या आवश्यकतानुसार । सेवन विधि - (१) स्त्रियों की कमजोरीमें गाय का दूध और मिश्री के साथ या चावल धोवन के साथ। (२) मूत्रविकार में आमलकी रस और मधु के साथ । (३) पित्त रोगों में घी या मक्खन मिश्री के साथ। (४) रक्तपित्त में कूष्माण्ड रस मधु के साथ । (५) अम्लपित्त में पटोल पमस्वरस के साथ । (६) भ्र० शिरः शूल में बच चूर्ण और पटोल पमस्…
(मूत्रविकार की सुप्रसिद्ध दवा) – यह बल तथा स्फूर्तिवर्द्धक रसायन है। इसके सेवन से मूत्र-विकार में लाभ होता है। इससे पेशाब में ओज आना, स्वप्नदोष, पेशाब में जलन होना, पेशाब का बन्द होना तथा रूक-रूक कर बून्द बन्द होना, गुर्दे में दर्द होना आदि रोगों में लाभ होता है मात्रा - २५० से ५०० मिलीग्राम (१ से २ टिकिया) तक। (अति टिकिया में मूल उपादान २५० मिलीग्राम है।) सुबह-शाम या रात्रि को सोते समय । सेवन विधि - (१) मूत्र विकार में गुडूची रस या आंवला रस या कच्ची हल्दी - रस और मधु के साथ। (२) पेशाब रुकने तथा जलन होने पर मधु से चाट…
सूखे मेवों में बादाम के उपरान्त अखरोट का महत्त्व है। इसकी गिरी स्वादु, पुष्टिकारक तथा शक्तिवर्धक होती है। अखरोट बोने के ३०-४० वर्ष बाद इसमें फल लगते हैं। अखरोट के फलों को तोड़कर किसी स्थान पर सुरक्षित रख लेते हैं। तीन मास बाद फल के अन्दर का दूध सुखकर गिरी का रूप धारण कर लेता है । विश्लेषण — जल - ४.५ प्रतिशत प्रोटीन -१५.६ % वसा-६४.५ % खनिज-१.५ % कार्बोहाइड्रेट्स-११.००% कैल्सियम ०.१० % अखरोट में लोहा ४.८ मिलीग्राम प्रतिशत और विटामिन 'बी' भी रहता है। वीर्यवर्धक योग चार अखरोट की गिरी पीसकर आधा लिटर दूध में औटाएं। इसमें दो रत्ती…
संगतरा पेड़ पर पका हो, मीठा हो, तो किसी भी रोग के रोगी को बेखटके दिया जा सकता है । जिस रोगी को कुछ भी खाने की मनाही है, उसे भी संगतरा या संगतरे का रस दिया जा सकता है । संगतरा शीतल, अम्ल-मधुर, बलवर्धक, रक्तवर्धक, विषनाशक और तृष्णा [प्यास]-नाशक है। रक्त-पित्त, प्रतिसार, कृमि [टट्टी में कीड़े आना ], पाण्डु [पीलिया ] आदि रोगों को दूर करता है । पेट के रोगों को दूर करता है। एक छोटा ग्लास संगतरे का ताजा रस पीने से हृदय रोग नहीं होता । हृदय रोग के रोगी को जब चिकित्सा के बाद आराम आ जाए, तब प्रतिदिन दो संगतरे अवश्य सेवन करने चाहियें। खूब मीठा संगतरा आन्त…
यह तमिलनाडु, केरल, बम्बई, गोआ आदि में पर्याप्त उपजता है । काजू में विटामिन बी' बहुत होता है। प्रोटीन प्रधान खाद्यों में यह सबसे उत्तम है । काजू का तेल हल्के पीले रंग का होता है और शुद्ध घी के बराबर पुष्टिकारक होता है । शीतकाल में काजू की गिरी कच्ची, भुनी हुई, तली हुई तथा तलने के बाद नमक मिर्च लगी हुई खाई जाती है । यह अत्यन्त स्वादिष्ट तथा बलवर्धक है । काजू का स्वादिष्ट पेय इस प्रकार तैयार किया जा सकता है- काजू के दाने २५ ग्राम लेकर रात को भिगो दें। प्रातः उसे सिल बट्टे पर रगड़ लें। पानी मिलाकर छान लें। इसमें दो दाने छोटी इलायची…
यह गर्म देशों के श्रेष्ठ फलों में गिना जाता है। बिहार में यह सबसे अधिक होता है। असम, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, बंगाल, केरल तथा उत्तर प्रदेश में भी काफ़ी उपजता है । थोड़ा-बहुत अन्य प्रदेशों में भी होता है । विश्लेषण- पानी ८९.६ प्रतिशत, कार्बोहाइड्रेट्स ६.५ प्रतिशत, प्रोटीन ०.५, ईथर एक्सट्रेक्ट ०.१ प्रतिशत, खनिज लवण ०.४ प्रति- शत, कैल्सियम ०.०१ प्रतिशत, फास्फोरस ०.०१ प्रतिशत, खनिज- पदार्थ ०.४ प्रतिशत । अन्य तत्त्व होते हैं—लिक, टारटरिक तथा साइट्रिक एसिड और अन्य कई लवण । इसमें एक बहुमूल्य वस्तु पाई जाती है, जिसका नाम पेपेन है। पेट में पहुँच…
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